स्कूलों को मर्ज करने के पीछे का तर्क? , टीचर ज्यादा दूरी से परेशान… यूपी की ‘स्कूल मर्जर’ पॉलिसी में कौन सही कौन गलत?
UP School Merger Policy: अब नाम ना बताने की शर्त पर एक नहीं कई शिक्षकों ने इस बात की शिकायत की है कि गांव में बच्चों के लिए इतना ट्रैवल करना मुश्किल रहता है। वे अनुभव से बताते हैं कि कई बच्चे पास वाले विद्यालयों में भी मुश्किल से आते हैं, कई बार तो उन्हें घर से बुलाना पड़ता है।
UP School Merger Policy: उत्तर प्रदेश की राजनीति में इस समय स्कूल मर्जर पॉलिसी को लेकर विवाद छिड़ चुका है। विवाद की जड़ एकदम स्पष्ट है- राज्य सरकार को लगता है कि अगर स्कूलों का विलय होगा तो उस स्थिति में सभी छात्रों को अच्छी शिक्षा, बेहतर सुविधाएं मिल पाएंगी। वहीं दूसरी तरफ इसी पॉलिसी का विरोध कर रही टीचरों और कई छात्रों का मानना है कि इस एक कदम की वजह से आने वाले समय में स्कूल में ड्रॉप आउट रेट बढ़ जाएगा, सभी को जो शिक्षा का अधिकार देने की बात होती है, उस मुहिम को झटका लगेगा।
ये भी पढ़ें 👉 कांवड़ यात्रा के चलते इन जिलों के सभी स्कूल 23 जुलाई तक बंद रहेंगे।
सरकार का आदेश क्या है?
इस मामले में योगी सरकार और शिक्षक आमने-सामने हैं, मामला कोर्ट तक जा चुका है। हाई कोर्ट ने अगर राज्य सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया है तो वहीं सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षकों की याचिका पर विचार करने की बात कही है। यानी कि अभी तक कुछ भी फाइनल नहीं हुआ है, लेकिन उत्तर प्रदेश में स्कूलों को मर्ज करने का काम यानी कि उनके विलय की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। जनसत्ता ने जब कई सारे दस्तावेजों को देखा तो पता चला कि 16 जून को कई स्कूलों को जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी की तरफ से नोटिस गया था। उदाहरण के लिए बुलंदशहर के प्राथमिक विद्यालय नैथला- 1 का विलय संविलियन विद्यालय नैथला में कर दिया गया है। इसी तरह लखनऊ में भी कई स्कूलों को लेकर ऐसे ही आदेश जारी हुए हैं।
स्कूलों को मर्ज करने के पीछे का तर्क?
अब यूपी सरकार का 16 जून वाला आदेश कहता है कि जिन भी प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों में 50 से कम छात्र होंगे, उनका दूसरे स्कूलों के साथ मर्जर कर दिया जाएगा। यूपी सरकार का तर्क है कि अगर छोटे स्कूलों का बड़े स्कूलों में मर्जर होगा तो उस स्थिति में छात्रों को बेहतर सुविधाएं मिल पाएंगी, उन्हें भी दूसरों की तरफ अच्छी शिक्षा मिलेगी। सरकार को ऐसा भी लगता है कि छोटे स्कूल हैं, वहां ना सिर्फ टीचरों की कमी है बल्कि बेसिक सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। वहीं जो थोड़े बड़े स्कूल हैं, उन तक तो सारी सुविधाएं भी पहुंच रही हैं और वहां बच्चों की संख्या भी ठीक-ठाक है।