पहले शिक्षकों को कार्यमुक्त करना, फिर वापस भेजना उत्पीड़न के समान: हाईकोर्ट
प्रयागराज इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक आदेश पारित कर कहा कि प्रतिवादी शिक्षा अधिकारियों को पिछली कार्रवाइयां यह दर्शर्शाती है कि उन्होंने स्थानांतरण के लिए पहले ऑनलाइन पोर्टल खोला, शिक्षकों को इसे भरने का अवसर प्रदान किया और बाद में इसे रद्द कर दिया, जिससे शिक्षकों को मानसिक पीड़ा हुई। कोर्ट ने कहा कि शिक्षा अधिकारियों का ऐसा आचरण दर्शाता है
कि उन्होंने दुर्भावनापूर्ण इरादों से काम किया है। यह सत्यापित किए बिना स्थानांतरण पोर्टल खोलना कि कोई संस्थान एकमात्र शिक्षक विहीन रह जाएगा या नहीं और फिर शिक्षकों को स्कूल से कार्यमुक्त करना और फिर उन्हें वापस भेजना, उत्पीड़न के समान है। ऐसे मामलों में, रिट याचिका के न्याय निर्णयन पर, यह न्यायालय जुमर्माना लगा सकता है और याचिकाकर्ताओं को मुआवजा देने का निर्देश दे सकता है, क्योंकि उन्होंने अपनी स्वयं की इच्छा पर कार्य नहीं किया है। बल्कि संबंधित अधिकारियों द्वारा पोर्टल खोलने के दिशा निर्देशों के अनुसार काम किया है।
प्रोति व तीन अन्य टीचरों की याचिका पर आदेश पारित करते हुए जस्टिस पी के गिरि ने आगे कहा कि भविष्य में यदि ऐसी बातें न्यायालय के संज्ञान में आती है, तो न्यायालय की एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा एक स्वतंत्र जांच का निर्देश देने की मजबूरी होगी, जिससे उन्हें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत कार्य करने के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सके। कोर्ट ने कहा कि इस आदेश की एक प्रति सचिव, बेसिक शिक्षा बोर्ड, यूपी के सभी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को प्रखारित करने के लिए भेजी जाएगी।
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