मानदेय वृद्धि की अनसुनी गुहार अनुदेशकों का संघर्ष

By Jaswant Singh

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basic shiksha vibhag

मानदेय वृद्धि की अनसुनी गुहार अनुदेशकों का संघर्ष

आज के इस महंगाई भरे दौर में, जहां हर दिन जीवन-यापन की लागत बढ़ती जा रही है, उत्तर प्रदेश के जूनियर स्कूलों में कार्यरत अनुदेशकों की एक ही पुकार सुनाई देती है – “अब तो अनुदेशकों का मानदेय में बढ़त करा दीजिए माननीय जी। कब तक इतना कम मानदेय 9000 में अपना पेट पालते रहेंगे हम सभी इतने मंहगाई में?” यह शब्द न केवल उनकी व्यथा को दर्शाते हैं, बल्कि उस व्यवस्था पर भी सवाल उठाते हैं जो इन शिक्षकों के योगदान को नजरअंदाज करती नजर आती है।

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शिक्षा का आधार, अनुदेशकों का संघर्ष

उत्तर प्रदेश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में जूनियर स्कूलों में कार्यरत अनुदेशक शिक्षा की नींव को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाते हैं। ये वे लोग हैं जो बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करते हैं, उनके भविष्य को संवारते हैं और समाज को शिक्षित करने की दिशा में पहला कदम उठाते हैं। लेकिन विडंबना यह है कि इतने महत्वपूर्ण कार्य के बावजूद इनका मानदेय मात्र 9000 रुपये प्रतिमाह है। इस राशि में न तो परिवार का भरण-पोषण संभव है और न ही बढ़ती महंगाई के सामने ये राशि टिक पाती है।

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महंगाई का बोझ और अनुदेशकों की स्थिति

पिछले कुछ वर्षों में खाद्य पदार्थों, ईंधन, और रोजमर्रा की जरूरतों की कीमतों में लगातार इजाफा हुआ है। किराया, बच्चों की पढ़ाई, और स्वास्थ्य सेवाओं का खर्च भी आसमान छू रहा है। ऐसे में 9000 रुपये का मानदेय न केवल अपर्याप्त है, बल्कि यह इन अनुदेशकों के सम्मान और उनके श्रम के मूल्य को भी कम करता है। सवाल यह उठता है कि जब सरकार शिक्षा को प्राथमिकता देने की बात करती है, तो शिक्षकों की इस दयनीय स्थिति पर चुप्पी क्यों?

लंबे समय से अनसुनी मांग

अनुदेशकों का मानदेय बढ़ाने की मांग कोई नई नहीं है। समय-समय पर ये शिक्षक अपनी आवाज उठाते रहे हैं, प्रदर्शन करते रहे हैं, और सरकार से गुहार लगाते रहे हैं। लेकिन हर बार उनकी मांगें या तो अनसुनी कर दी जाती हैं या फिर आश्वासनों के भंवर में खो जाती हैं। यह स्थिति न केवल उनके मनोबल को तोड़ती है, बल्कि उनके परिवारों पर भी आर्थिक और भावनात्मक संकट लाती है।

सरकार से अपील

अनुदेशकों की यह मांग जायज है कि उनके मानदेय में वृद्धि की जाए। यह न केवल उनकी आर्थिक स्थिति को सुधारेगा, बल्कि उनके कार्य के प्रति उत्साह को भी बढ़ाएगा। सरकार को चाहिए कि वह इस मुद्दे पर त्वरित कदम उठाए और एक ऐसी नीति बनाए जिससे इन शिक्षकों को सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर मिले। मानदेय में बढ़ोतरी के साथ-साथ उनकी सेवाओं को नियमित करने पर भी विचार किया जाना चाहिए, ताकि वे निश्चिंत होकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें।

शिक्षा किसी भी समाज की रीढ़ होती है और शिक्षक उसका आधार। अगर हम अनुदेशकों की उपेक्षा करेंगे, तो शिक्षा के ढांचे को मजबूत करने का सपना अधूरा ही रहेगा। “माननीय जी” से यह विनम्र अपील है कि अनुदेशकों की इस पुकार को सुनें और उनके मानदेय में बढ़ोतरी कर उन्हें वह सम्मान दें जिसके वे हकदार हैं। आखिर, कब तक ये शिक्षक 9000 रुपये में अपना और अपने परिवार का पेट पालते रहेंगे?

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